Friday, 29 September 2017

गुफा की आवाज

एक बूढ़ा शेर जंगल में मारा-मारा फिर रहा था। कई दिनों से उसे खाना नसीब नहीं हुआ था। दरअसल बुढ़ापे के कारण वह शिकार नहीं कर पाता था। छोटे-छोटे जानवर भी उसे चकमा देकर भाग जाते थे। वह भटकते-भटकते काफी थक गया तो एक स्थान पर रुककर सोचने लगा कि क्या करूं ? किधर जाऊं ? कैसे बुजाऊं इस पेट की आग ? काश ! मैं भी दूसरे शाकाहारी जानवरों की भांति घास-पात, फल-फूल खा लेने वाला होता तो आज मुझे इस प्रकार भूखों न मरना पड़ता।
अचानक उसकी नजर एक गुफा पर पड़ी। उसने सोचा कि इस गुफा में अवश्य ही कोई जंगली जानवर रहता होगा। मैं इस गुफा के अन्दर बैठ जाता हूं, जैसे ही वह जानवर आएगा, मैं उसे खाकर अपना पेट भर लूंगा। शेर उस गुफा के अंदर जाकर बैठ गया और अपने शिकार की प्रतीक्षा करने लगा।
वह गुफा एक गीदड़ की थी। गीदड़ ने गुफा के करीब आते ही गुफा में शेर के पंजों के निशान देखे तो वह फौरन खतरा भांप गया। परंतु सामने संकट देखकर उसने अपना संयम नहीं खोया बल्कि उसकी बुद्धि तेजी से काम करने लगी कि इस शत्रु से कैसे बचा जाए ?

और फिर उसकी बुद्धि में नई बात आ ही गई, वह गुफा के द्वार पर खड़ा होकर बोला--‘‘ओ गुफा ! गुफा ।’’
जब अंदर से गुफा ने कोई उत्तर न दिया, तो गीदड़ एक बार फिर बोला—‘‘सुन री गुफा ! तेरी मेरी यह संधि है कि मैं बाहर से आऊंगा तो तेरा नाम लेकर तुझे बुलाऊंगा, जिस दिन तुम मेरी बात का उत्तर नहीं दोगी मैं तुझे छोड़कर किसी दूसरी गुफा में रहने चला जाऊंगा।’’
जवाब न मिलता देख गीदड़-बार-बार अपनी बात दोहराने लगा।
अन्दर बैठे शेर ने गीदड़ के मुंह से यह बात सुनी, तो वह यह समझ बैठा कि गुफा गीदड़ के आने पर जरूर बोलती होगी। अतः अपनी आवाज को भरसक मधुर बनाकर वह बोला—‘‘अरे आओ—आओ गीदड़ भाई। स्वागत है।’’
‘‘अरे शेर मामा ! तुम हो। बुढ़ापे में तुम्हारी बुद्धि इतना भी नहीं सोच पा रही कि गुफाएं कभी नहीं बोलतीं। 
कहकर वह तेजी से पलटकर भागा। शेर ने उसे पकड़ने के लिए गुफा से बाहर अवश्य आया किंतु तब तक वह गीदड़ नौ दो ग्याह हो चुका था।
शिक्षा—संकट के समय में भी बुद्धि का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

No comments:

Post a Comment