Friday, 29 September 2017

Pauranik Kathayen in Hindi #5: कर्ण की निष्ठा

एक राज पुत्र होते हुए भी कर्ण सूत पुत्र कहा गया। कर्ण एक महान दानवीर था। अपनें प्रण और वचन के लिए कर्ण अपनें प्राणों की भी बलि दे सकता था। पांडवों की शिक्षा खतम होने के बाद आयोजित रंग-भूमि में आकर कर्ण अर्जुन को ललकारता है  कि अगर वह संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुरधर है तो उससे मुक़ाबला कर के सिद्ध करे।
कर्ण एक सूत के घर पला-बढ़ा होता है, इसलिए उसे सूत पुत्र समझ कर अर्जुन से मुक़ाबला नहीं करने दिया जाता है। पांडवों के प्रखर विरोधी दुर्योधन को यहाँ एक अवसर दिखता है, और वह फौरन कर्ण को अंग देश का राजा घोषित कर देता है। और कर्ण को अपना मित्र बना लेता है।
दुर्योधन के इस कृत्य से कर्ण के दुखते घावों पर मरहम लग जाता है। लेकिन समय सीमा खत्म होने के कारण रंगभूमि में कर्ण-अर्जुन का मुक़ाबला टल जाता है।
पांडवो और कौरवों के अंतिम निर्णायक युद्ध के पहले भगवान कृष्ण कर्ण को यह भेद बताते हैं कि तुम एक पांडव हो और कुंती के ज्येष्ठ पुत्र हो। इस रहस्य को जान कर भी कर्ण अपनें मित्र दुर्योधन से घात कर के अपनें भाइयों की ओर नहीं जाता है।

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